श्री भगवानदास आदर्श संस्कृत महाविद्यालय में आयोजित हुआ दार्शनिक दिवस

            हरिद्वार! आज श्री भगवानदास आदर्श संस्कृत महाविद्यालय में भगवत्पाद आद्यशङ्करचार्य की जन्मतिथि के अवसर पर भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् के सहयोग से दार्शनिक दिवस का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में उपस्थित विशिष्ट अतिथि उत्तराखंड संस्कृत अकादमी के सचिव डॉ वाजश्रवा आर्य ने कहा कि भारतीय दार्शनिकों में परस्पर कोई भेद नहीं है। यम, नियम, अहिंसा, सत्य, अस्तेय आदि विषयों पर किसी भी विद्वान् में कोई मतभेद संभव नहीं है। भारतीय दर्शनों की महत्ता को समझने के लिए हमें पाश्चात् दर्शन भी पढ़ना चाहिए; क्योंकि पाश्चात्यदर्शन की भारतीय दर्शन से कोई तुलना नहीं की जा सकती है। उन्होंने कहा कि दैनिक जीवन की समस्याओं का समाधान करने के लिए दर्शनों का ज्ञान अनिवार्य है। जब व्यक्ति सांसारिक बाधाओं अथवा दुःखों से पीड़ित होता है; तो उस समय दर्शन हमें जीना सिखाता है।

   गुरुकुल काङ्गड़ी विश्वविद्यालय के सहायकाचार्य डॉ. वेदव्रत ने कहा कि भारतीय दर्शन पुनर्जन्म, कर्मफल और आस्तिकता पर विद्यमान है। दर्शन हमारे इस सांसारिक जीवन के साथ-साथ परलोक के जीवन का निर्माण करने का भी उपदेश देता है। साथ ही साथ उन्होंने भारतीय दर्शन परम्परा की वर्तमान दशा पर भी अपने विचार प्रस्तुत किये।

      प्रो. विजयलक्ष्मी ने कहा कि आचार्य शंकर ने अपनी विद्या के बल पर संसार में एक नया आयाम स्थापित किया। आचार्य शंकर का जीवन अत्यल्प था। उस काल में प्रस्थानत्रयी जैसे ग्रन्थों की रचना कर उन्होंने भारतीय दार्शनिकों में अपना गौरवपूर्ण स्थान बनाया। उन्होंने कहा कि आधुनिक संसार में विज्ञान के पास भी ऐसा कोई उपाय नहीं है, जिससे व्यक्ति आत्मिक शांति प्राप्त कर सके। केवल दर्शन ही आत्मिक शांति दे सकता है। लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय केन्द्रीय विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के आचार्य प्रो. के. अनन्त जी ने कहा कि दर्शनों का मूल उपनिषदों में निहित है। दर्शन उपनिषदों का सार है। इन्होंने समस्त दर्शनों का परिचय देते हुए कहा कि दर्शन जीवन का मूल है। बृहदारण्यकोपनिषद् की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि यह आत्मा श्रोतव्य, मन्तव्य और निदिध्यासितव्य है। ईशावास्योपनिषद् का उदाहरण देते हुए कहा कि इस संसार में ईश्वर सर्वव्यापक है। हमें अशुभ कर्म करने से प्रत्येक स्थान पर डरना चाहिए। ईश्वर की दृष्टि से कोई बच नहीं सकता है।

      कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ. व्रजेन्द्र कुमार सिंहदेव ने कहा कि तर्क के आधार केवल भारतीय दर्शनशास्त्र ही है। भारतीय दर्शन के द्वारा ही सांसारिक दुःखों से निवृत्ति हो सकती हैं।

     कार्यक्रम का संयोजन करते हुए डॉ. रवीन्द्र कुमार ने कहा कि यदि हमें दर्शनों को समझना है तो शंकराचार्य द्वारा लिखित चर्पटमञ्जरी पुस्तक पढ़नी चाहिए।

       इस अवसर पर महाविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. निरंजन मिश्र, डॉ. मञ्जु पटेल, डॉ. आशिमा श्रवण, डॉ. आलोक कुमार सेमवाल, डॉ. अङ्कुर कुमार आर्य, श्री शिवदेव आर्य, डॉ. सुमन्त कुमार सिंह, श्री एम. नरेश भट्ट, श्री आदित्य प्रकाश, डॉ. प्रमेश कुमार बिजल्वाण, डॉ. अंकुल कर्णवाल, श्री विवेक शुक्ला, श्री मनोज कुमार गिरि, श्री अतुल मैखुरी, श्रीमती स्वाती शर्मा महाविद्यालय के सभी छात्र-छात्राऐ तथा कर्मचारी उपस्थित रहें।

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